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Thursday, March 23, 2017

नये नेताओं के अलग-अलग विचार-भगतसिंह (1928)

जुलाई, 1928 के ‘किरती’ में छपे इस लेख में भगतसिंह ने सुभाषचन्द्र बोस और जवाहरलाल नेहरू के विचारों की तुलना की है।
असहयोग आन्दोलन की असफलता के बाद जनता में बहुत निराशा और मायूसी फैली। हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों ने बचा-खुचा साहस भी खत्म कर डाला। लेकिन देश में जब एक बार जागृति फैल जाए तब देश ज्यादा दिन तक सोया नहीं रह सकता। कुछ ही दिनों बाद जनता बहुत जोश के साथ उठती तथा हमला बोलती है। आज हिन्दुस्तान में फिर जान आ गई है। हिन्दुस्तान फिर जाग रहा है। देखने में तो कोई बड़ा जन-आन्दोलन नजर नहीं आता लेकिन नींव जरूर मजबूत की जा रही है। आधुनिक विचारों के अनेक नए नेता सामने आ रहे हैं। इस बार नौजवान नेता ही देशभक्त लोगों की नजरों में आ रहे हैं। बड़े-बड़े नेता बड़े होने के बावजूद एक तरह से पीछे छोड़े जा रहे हैं। इस समय जो नेता आगे आए हैं वे हैं- बंगाल के पूजनीय श्री सुभाषचन्द्र बोस और माननीय पण्डित श्री जवाहरलाल नेहरू। यही दो नेता हिन्दुस्तान में उभरते नजर आ रहे हैं और युवाओं के आन्दोलनों में विशेष रूप से भाग ले रहे हैं। दोनों ही हिन्दुस्तान की आजादी के कट्टर समर्थक हैं। दोनों ही समझदार और सच्चे देशभक्त हैं। लेकिन फिर भी इनके विचारों में जमीन-आसमान का अन्तर है। एक को भारत की प्राचीन संस्कृति का उपासक कहा जाता है तो दूसरे को पक्का पश्चिम का शिष्य। एक को कोमल हृदय वाला भावुक कहा जाता है और दूसरे को पक्का युगान्तरकारी। हम इस लेख में उनके अलग-अलग विचारों को जनता के समक्ष रखेंगे, ताकि जनता स्वयं उनके अन्तर को समझ सके और स्वयं भी विचार कर सके। लेकिन उन दोनों के विचारों का उल्लेख करने से पूर्व एक और व्यक्ति का उल्लेख करना भी जरूरी है जो इन्हीं स्वतन्त्रता के प्रेमी हैं और युवा आन्दोलनों की एक विशेष शख्सियत हैं। साधू वासवानी चाहे कांग्रेस के बड़े नेताओं की भाँति जाने माने तो नहीं, चाहे देश के राजनीतिक क्षेत्र में उनका कोई विशेष स्थान तो नहीं, तो भी युवाओं पर, जिन्हें कि कल देश की बागडोर संभालनी है, उनका असर है और उनके ही द्वारा शुरू हुआ आन्दोलन ‘भारत युवा संघ’ इस समय युवाओं में विशेष प्रभाव रखता है। उनके विचार बिल्कुल अलग ढंग के हैं। उनके विचार एक ही शब्द में बताए जा सकते हैं — “वापस वेदों की ओर लौट चलो।” (बैक टू वेदस)। यह आवाज सबसे पहले आर्यसमाज ने उठाई थी। इस विचार का आधार इस आस्था में है कि वेदों में परमात्मा ने संसार का सारा ज्ञान उड़ेल दिया है। इससे आगे और अधिक विकास नहीं हो सकता। इसलिए हमारे हिन्दुस्तान ने चौतरफा जो प्रगति कर ली थी उससे आगे न दुनिया बढ़ी है और न बढ़ सकती है। खैर, वासवानी आदि इसी अवस्था को मानते हैं। तभी एक जगह कहते हैं —
“हमारी राजनीति ने अब तक कभी तो मैजिनी और वाल्टेयर को अपना आदर्श मानकर उदाहरण स्थापित किए हैं और या कभी लेनिन और टॉल्स्टाय से सबक सीखा। हालांकि उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि उनके पास उनसे कहीं बड़े आदर्श हमारे पुराने ॠषि हैं।” वे इस बात पर यकीन करते हैं कि हमारा देश एक बार तो विकास की अन्तिम सीमा तक जा चुका था और आज हमें आगे कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि पीछे लौटने की जरूरत है।
आप एक कवि हैं। कवित्व आपके विचारों में सभी जगह नजर आता है। साथ ही यह धर्म के बहुत बड़े उपासक हैं। यह'शक्ति’ धर्म चलाना चाहते हैं। यह कहते हैं, “इस समय हमें शक्ति की अत्यन्त आवश्यकता है।” वह ‘शक्ति’ शब्द का अर्थ केवल भारत के लिए इस्तेमाल नहीं करते। लेकिन उनको इस शब्द से एक प्रकार की देवी का, एक विशेष ईश्वरीय प्राप्ति का विश्वास है। वे एक बहुत भावुक कवि की तरह कहते हैं —
“For in solitude have communicated with her, our admired Bharat Mata, And my aching head has heard voices saying... The day of freedom is not far off.” ..Sometimes indeed a strange feeling visits me and I say to myself – Holy, holy is Hindustan. For still is she under the protection of her mighty Rishis and their beauty is around us, but we behold it not.
अर्थात् एकान्त में भारत की आवाज मैंने सुनी है। मेरे दुखी मन ने कई बार यह आवाज सुनी है कि ‘आजादी का दिन दूर नहीं'...कभी कभी बहुत अजीब विचार मेरे मन में आते हैं और मैं कह उठता हूँ — हमारा हिन्दुस्तान पाक और पवित्र है, क्योंकि पुराने ॠषि उसकी रक्षा कर रहे हैं और उनकी खूबसूरती हिन्दुस्तान के पास है। लेकिन हम उन्हें देख नहीं सकते।
यह कवि का विलाप है कि वह पागलों या दीवानों की तरह कहते रहे हैं — “हमारी माता बड़ी महान है। बहुत शक्तिशाली है। उसे परास्त करने वाला कौन पैदा हुआ है।” इस तरह वे केवल मात्र भावुकता की बातें करते हुए कह जाते हैं — “Our national movement must become a purifying mass movement, if it is to fulfil its destiny without falling into clasaa war one of the dangers of Bolshevism.”
अर्थात् हमें अपने राष्ट्रीय जन आन्दोलन को देश सुधार का आन्दोलन बना देना चाहिए। तभी हम वर्गयुद्ध के बोल्शेविज्म के खतरों से बच सकेंगे। वह इतना कहकर ही कि गरीबों के पास जाओ, गाँवों की ओर जाओ, उनको दवा-दारू मुफ्त दो — समझते हैं कि हमारा कार्यक्रम पूरा हो गया। वे छायावादी कवि हैं। उनकी कविता का कोई विशेष अर्थ तो नहीं निकल सकता, मात्र दिल का उत्साह बढ़ाया जा सकता है। बस पुरातन सभ्यता के शोर के अलावा उनके पास कोई कार्यक्रम नहीं। युवाओं के दिमागों को वे कुछ नया नहीं देते। केवल दिल को भावुकता से ही भरना चाहते हैं। उनका युवाओं में बहुत असर है। और भी पैदा हो रहा है। उनके दकियानूसी और संक्षिप्त-से विचार यही हैं जो कि हमने ऊपर बताए हैं। उनके विचारों का राजनीतिक क्षेत्र में सीधा असर न होने के बावजूद बहुत असर पड़ता है। विशेषकर इस कारण कि नौजवानों,युवाओं को ही कल आगे बढ़ना है और उन्हीं के बीच इन विचारों का प्रचार किया जा रहा है।
अब हम श्री सुभाषचन्द्र बोस और श्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों पर आ रहे हैं। दो-तीन महीनों से आप बहुत-सी कान्फ्रेंसों के अध्यक्ष बनाए गए और आपने अपने-अपने विचार लोगों के सामने रखे। सुभाष बाबू को सरकार तख्तापलट गिरोह का सदस्य समझती है और इसीलिए उन्हें बंगाल अध्यादेश के अन्तर्गत कैद कर रखा था। आप रिहा हुए और गर्म दल के नेता बनाए गए। आप भारत का आदर्श पूर्ण स्वराज्य मानते हैं, और महाराष्ट्र कान्फ्रेंस में अध्यक्षीय भाषण में अपने इसी प्रस्ताव का प्रचार किया।
पण्डित जवाहरलाल नेहरू स्वराज पार्टी के नेता मोतीलाल नेहरू ही के सुपुत्र हैं। बैरिस्टरी पास हैं। आप बहुत विद्वान हैं। आप रूस आदि का दौरा कर आए हैं। आप भी गर्म दल के नेता हैं और मद्रास कान्फ्रेंस में आपके और आपके साथियों के प्रयासों से ही पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव स्वीकृत हो सका था। आपने अमृतसर कान्फ्रेंस के भाषण में भी इसी बात पर जोर दिया। लेकिन फिर भी इन दोनों सज्जनों के विचारों में जमीन-आसमान का अन्तर है। अमृतसर और महाराष्ट्र कान्फ्रेंसों के इन दोनों अध्यक्षों के भाषण पढ़कर ही हमें इनके विचारों का अन्तर स्पष्ट हुआ था। लेकिन बाद में बम्बई के एक भाषण में यह बात स्पष्ट रूप से हमारे सामने आ गई। पण्डित जवाहरलाल नेहरू इस जनसभा की अध्यक्षता कर रहे थे और सुभाषचन्द्र बोस ने भाषण दिया। वह एक बहुत भावुक बंगाली हैं। उन्होंने भाषण आरंभ किया कि हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष सन्देश है। वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा। खैर, आगे वे दीवाने की तरह कहना आरम्भ कर देते हैं — चांदनी रात में ताजमहल को देखो और जिस दिल की यह सूझ का परिणाम था, उसकी महानता की कल्पना करो। सोचो एक बंगाली उपन्यासकार ने लिखा है कि हममें यह हमारे आँसू ही जमकर पत्थर बन गए हैं। वह भी वापस वेदों की ओर ही लौट चलने का आह्वान करते हैं। आपने अपने पूना वाले भाषण में ‘राष्ट्रवादिता’ के सम्बन्ध में कहा है कि अन्तर्राष्ट्रीयतावादी, राष्ट्रीयतावाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचारधारा बताते हैं, लेकिन यह भूल है। हिन्दुस्तानी राष्ट्रीयता का विचार ऐसा नहीं है। वह न संकीर्ण है, न निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है, क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ है अर्थात् सच,कल्याणकारी और सुन्दर।
यह भी वही छायावाद है। कोरी भावुकता है। साथ ही उन्हें भी अपने पुरातन युग पर बहुत विश्वास है। वह प्रत्येक बात में अपने पुरातन युग की महानता देखते हैं। पंचायती राज का ढंग उनके विचार में कोई नया नहीं। ‘पंचायती राज और जनता के राज'वे कहते हैं कि हिन्दुस्तान में बहुत पुराना है। वे तो यहाँ तक कहते हैं कि साम्यवाद भी हिन्दुस्तान के लिए नई चीज नहीं है। खैर, उन्होंने सबसे ज्यादा उस दिन के भाषण में जोर किस बात पर दिया था कि हिन्दुस्तान का दुनिया के लिए एक विशेष सन्देश है। पण्डित जवाहरलाल आदि के विचार इसके बिल्कुल विपरीत हैं। वे कहते हैं —
“जिस देश में जाओ वही समझता है कि उसका दुनिया के लिए एक विशेष सन्देश है। इंग्लैंड दुनिया को संस्कृति सिखाने का ठेकेदार बनता है। मैं तो कोई विशेष बात अपने देश के पास नहीं देखता। सुभाष बाबू को उन बातों पर बहुत यकीन है।” जवाहरलाल कहते हैं —
“Every youth must rebel. Not only in political sphere, but in social, economic and religious spheres also. I have not much use for any man who comes and tells me that such and such thing is said in Koran, Every thing unreasonable must be discarded even if they find authority for in the Vedas and Koran.”
[यानी] “प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी। मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलाँ बात कुरान में लिखी हुई है। कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए।”
यह एक युगान्तरकारी के विचार हैं और सुभाष के एक राज-परिवर्तनकारी के विचार हैं। एक के विचार में हमारी पुरानी चीजें बहुत अच्छी हैं और दूसरे के विचार में उनके विरुद्ध विद्रोह कर दिया जाना चाहिए। एक को भावुक कहा जाता है और एक को युगान्तरकारी और विद्रोही। पण्डित जी एक स्थान पर कहते हैं —
“To those who still fondly cherish old ideas and are striving to bring back the conditions which prevailed in Arabia 1300 years ago or in the Vedic age in India. I say, that it is inconceivable that you can bring back the hoary past. The world of reality will not retrace its steps, the world of imaginations may remain stationary.”
वे कहते हैं कि जो अब भी कुरान के जमाने के अर्थात् 1300 बरस पीछे के अरब की स्थितियाँ पैदा करना चाहते हैं, जो पीछे वेदों के जमाने की ओर देख रहे हैं उनसे मेरा यह कहना है कि यह तो सोचा भी नहीं जा सकता कि वह युग वापस लौट आएगा, वास्तविक दुनिया पीछे नहीं लौट सकती, काल्पनिक दुनिया को चाहे कुछ दिन यहीं स्थिर रखो। और इसीलिए वे विद्रोह की आवश्यकता महसूस करते हैं।
सुभाष बाबू पूर्ण स्वराज के समर्थन में हैं क्योंकि वे कहते हैं कि अंग्रेज पश्चिम के वासी हैं। हम पूर्व के। पण्डित जी कहते हैं,हमें अपना राज कायम करके सारी सामाजिक व्यवस्था बदलनी चाहिए। उसके लिए पूरी-पूरी स्वतन्त्रता प्राप्त करने की आवश्यकता है।
सुभाष बाबू मजदूरों से सहानुभूति रखते हैं और उनकी स्थिति सुधारना चाहते हैं। पण्डित जी एक क्रांति करके सारी व्यवस्था ही बदल देना चाहते हैं। सुभाष भावुक हैं — दिल के लिए। नौजवानों को बहुत कुछ दे रहे हैं, पर मात्र दिल के लिए। दूसरा युगान्तरकारी है जो कि दिल के साथ-साथ दिमाग को भी बहुत कुछ दे रहा है।
“They should aim at Swaraj for the masses based on socialism. That was a revolutionary change with they could not bring out without revolutionary methods...Mere reform or gradual repairing of the existing machinery could not achieve the real proper Swaraj for the General Masses.” अर्थात् हमारा समाजवादी सिद्धान्तों के अनुसार पूर्ण स्वराज होना चाहिए, जो कि युगान्तरकारी तरीकों के बिना प्राप्त नहीं हो सकता। केवल सुधार और मौजूदा सरकार की मशीनरी की धीमी-धीमी की गई मरम्मत जनता के लिए वास्तविक स्वराज्य नहीं ला सकती।
यह उनके विचारों का ठीक-ठाक अक्स है। सुभाष बाबू राष्ट्रीय राजनीति की ओर उतने समय तक ही ध्यान देना आवश्यक समझते हैं जितने समय तक दुनिया की राजनीति में हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल है। परन्तु पण्डित जी राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरों से निकलकर खुले मैदान में आ गए हैं।
अब सवाल यह है कि हमारे सामने दोनों विचार आ गए हैं। हमें किस ओर झुकना चाहिए। एक पंजाबी समाचार पत्र ने सुभाष की तारीफ के पुल बाँधकर पण्डित जी आदि के बारे में कहा था कि ऐसे विद्रोही पत्थरों से सिर मार-मारकर मर जाते हैं। ध्यान रखना चाहिए कि पंजाब पहले ही बहुत भावुक प्रान्त है। लोग जल्द ही जोश में आ जाते हैं और जल्द ही झाग की तरह बैठ जाते हैं।
सुभाष आज शायद दिल को कुछ भोजन देने के अलावा कोई दूसरी मानसिक खुराक नहीं दे रहे हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि पंजाब के नौजवानों को इन युगान्तरकारी विचारों को खूब सोच-विचार कर पक्का कर लेना चाहिए। इस समय पंजाब को मानसिक भोजन की सख्त जरूरत है और यह पण्डित जवाहरलाल नेहरू से ही मिल सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके अन्धे पैरोकार बन जाना चाहिए। लेकिन जहाँ तक विचारों का सम्बन्ध है, वहाँ तक इस समय पंजाबी नौजवानों को उनके साथ लगना चाहिए, ताकि वे इन्कलाब के वास्तविक अर्थ, हिन्दुस्तान के इन्कलाब की आवश्यकता, दुनिया में इन्कलाब का स्थान क्या है,आदि के बारे में जान सकें। सोच-विचार के साथ नौजवान अपने विचारों को स्थिर करें ताकि निराशा, मायूसी और पराजय के समय में भी भटकाव के शिकार न हों और अकेले खड़े होकर दुनिया से मुकाबले में डटे रह सकें। इसी तरह जनता इन्कलाब के ध्येय को पूरा कर सकती है।

Date Written: July 1928
Author: Bhagat Singh
Title: Different views of new leaders (Naye netaon ke alag alag vicar)
First Published: in Kirti July 1928.
Reference- https://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1928/naye-netaon.htm

Saturday, March 18, 2017

ट्रॅफिक पोलिसांनी चक्क माझे License आणि पावतीसाठीचे पैसे परत दिले- एक असाही अनुभव

शहाण्याने कोर्टाचीे  पायरी चढू नये म्हणतात तसा मी कोर्ट, पोलीस आणि दवाखाना यांच्यापासून चार हात दूरच असतो.

नियमित व्यायाम केला तर दवाखान्याची गरज नाही, वाहतुकीचे नियम पाळले ट्रॅफिक पोलिसांशी संबंध येत नाही. पण कधी कधी काही प्रसंग टाळता येत नाहीत.


पुण्यात कुठल्या कार्यक्रमाला जायचे म्हटले  तर बऱ्याचदा पार्किंग शोधायलाच 10-15 मिनिट जातात पण हे जर नाही केले तर नो पार्किंग मधून कधी गाडी उचलून नेतील याचा भरोसा नाही म्हणून तेवढी काळजी घ्यावीच लागते.

असाच काही दिवसांपूर्वी शिवाजीनगर चौकातून संचेती हॉस्पिटल रस्त्याकडे जात होतो गाडी डावीकडे वळवली तेव्हा ट्रॅफिक पोलिसांनी अडवले. मनात म्हटल कारण काय? डोक्यावर हेल्मेट होते, हेड लाईट, नंबर प्लेट सर्व तर बरोबर होते मग काय कारण असेल बरं? त्यांनी माझ्याकडून चालक परवाना (Driving Licence) घेतला आणि २०० रु ची पावती करायला सांगितले. म्हटल ‘काका चुकल काय पण माझ?’ तेव्हा कळले कि दुभाजकाच्या डाव्या बाजूने जाण्याऐवजी मी उजव्या बाजूने गाडी घेतली होती जेथून डावीकडे वळायला परवानगी नव्हती. त्यांना म्हटले "बोर्ड तरी लावायला हवा होता याबद्दल" , मग म्हटले "जाऊ द्या ना काका एवढ्या वेळेस" पण २०० रु ची पावती करा आणि मगच licence देतो अस त्यांनी बजावलेे. काय करणार?


खिशात हात घातला तर ६० रु निघाले. Debit Card होते पण नोटबंदीचा काळ होता. ६० रु दिले आणि म्हटले जाऊ द्या एवढेच आहेत पण तरीही त्यांनी licence काही दिले नाही. शेवटी sack मध्ये काही आहे का शोधू लागलो त्यात माझेच गांधीजीचे एक पुस्तक होते कुणाला तरी कुरिअर ने पाठवायचे होते ते दिले आणि पुस्तकाची माहिती दिली. त्यानंतर काय झाले काय माहित पण त्यांनी licence आणि ६० रु दोन्ही परत दिले. पुस्तक त्यांच्याकडेच ठेवले आणि जा म्हणाले. "पुस्तक कसे वाटले त्याचा अभिप्राय नक्की द्या असे 2-3दा त्यांना सांगून मी निघालो. "गांधी मजबुरी नाही मजबुती का नाम" याचा प्रत्यय आला.पण मन अस्वस्थ होते "का सोडले बरं?"

दुसर्या दिवशी पुन्हा माहिती घेऊ म्हणून तेथे गेलो तर ज्यांना पुस्तक दिले ते पोलीस तिथे नव्हते दुसरे होते त्यांच्याकडून दंड कसा असतो आणि इतर नियम काय असतात या गोष्टींबाबातीत माहिती घेऊ लागलो. "पोलीस काहीतरी कारण काढून पावती न करता पैसे उकळतात"असा एक समज अनेक लोकांमध्ये आहे याबद्दल विचारले असता त्यांनी सांगितले कि पोलीस कधीच पैसे मागत नाहीत प्रत्यक्ष्य डेमो तुम्हीच बघा त्यानंतर मात्र जे झाले ते आश्चर्यकारक होते

सिग्नल तोडणार्या दोघांची गाडी अडवली आणि मला जवळ बोलवून निरीक्षण करायला सांगितले. दोघांना  २००-२०० रु ची पावती करायला सांगितले. क्रमाने ५० रु आणि नंतर १०० रु देण्याचा प्रयत्न त्यातील एकाने  केला शेवटी पोलिसांनी शेवटपर्यंत नकार दिल्याने बर्याच वेळाने त्याने २०० रु ची पावती केली दुसर्याने तर शेवटपर्यंत दिलेच नाहीत.

   ट्रॅफिक चे नियम व इतर अनेक बाबतीतील सत्य अधिक जाणून घेण्यासाठी मग पुणे शहराचे मुख्य पोलीस निरीक्षक शंकरराव डामसे यांची भेट घेतली.. त्यांना अनेक प्रश्न विचारले पोलिसांच्या समस्या जाणून घेण्याचा प्रयत्न केला. सणवार आदीच्या सुट्टीबाबत विचारले असता ते म्हणाले कि "आम्हाला स्वतःला जरी सण साजरे करता येत नसले तरी लोक जे सण साजरे करतात त्यातच आमचा सन्मान आहे".हेल्मेट न घातल्यामुळे आज काल कुणाला पकडत नाही याबाबत त्यांना विचारले असता त्यांनी सांगितले कि पोलीसही शेवटी माणूसच आहे.समोरच्या ३० गाड्यांपैकी ३-४ जन च हेल्मेट घालत असतील तर पोलीस कुणा-कुणाला पकडणार ?


या चर्चेतून हा निष्कर्ष निघाला कि पोलीस तर आपल्या संरक्षणासाठी त्यांचे सणवार, घर परिवार आदी सोडून रात्रंदिवस झटत असतात आपण त्याची जाण ठेवायला हवी.त्यांच्या असण्यामुळेच आपण वेळेवर सुरक्षितपणे आपल्या ठिकाणी जाऊ शकतो 

, अपघात होत नाहीत बऱ्याच गोष्टी सुलभ होतात हे लक्षात घ्यायला हवे


याच बाबतचे काही अनुभव मला ही आले


वर्षभरापूर्वी अॉफिसमधुन घरी येत होतो. 


पुणे मुंबई हायवेवर पिंपरी वरुन खडकीकडे जात असताना आमच्या कारच्या(company cab) थोडस पुढे भरदाव जाणारी एक बाईक स्लिप झाली बाईकवरील युवकाचे डोके दुभाजकाला जोरात धडकले ,बर्याच लांबपर्यंत तो गाडीसह फरपटत गेला आणि पडला. त्याच्या शेजारुन जाणार्या छोट्या टेंपोचालकाने प्रसंगवधान राखुन ईशारा करुन मागुन येणार्या गाड्यांना थांबवले 1-2 जणाांनी आपली गाडी थांबवुन त्या तरुणाला ऊचलुन बाजुला नेले त्याला किरकोळ मुका मार लागला होता हेल्मेटमुळे डोक्याला कुठलीही दुखापत झाली नव्हती हेल्मेट नसते तर काय झाले असते कुणास ठाऊक??


दोन वर्षांपूर्वी (नोव्हेंबर 2014)माझ्या Cousinचा(आत्येभाऊ)अपघात झाला होता तो पौडरोड सिग्नलवर थांबला होता आणि समोरुन येणार्या एका भरदाव कारने त्याला ऊडवले व कारचालक फरार झाली जवळ असणार्या काही लोकांनी त्याला हॉस्पिटलमध्ये नेले डोक्याला गंभीर जखम झाली होती 3दिवस तो ICU मध्ये होता आणि नंतर महिनाभर दवाखान्यातच.यात त्याची काहीही चुकी नव्हती तरीही त्याला हे सर्व सहन करावे लागले.यानंतर त्यानेही सांगितले कि हेल्मेट असते तर एवढी जखम झाली नसती.


असाच माझ्या एका जवळच्या नातेवाईकाचाही शिक्रापुरजवळ अपघात झाला.शिक्रापुरहुन पुण्याकडे कारने येत असताना  एक व्यक्ती अचानक गाडीसमोर आल्याने चालकाने त्या व्यक्तीला वाचवण्यासाठी गाडी दुसरीकडे वळवली तेव्हा ती समोर थांबलेल्या कंटेनरला धडकली आणि थांबली तसे ते डायरेक्ट पुढे ढकलले गेले आणि त्यांच्या डोक्याला आणि हनुवटीला, जबड्याला गंभीर जखमा झाल्या आहेत. ड्राइवरने सीट बेल्ट लावल्यामुळे त्याला जास्त काही झाले नाही.


हेल्मेट किंवा सिट बेल्ट अतिशय महत्वाचे आहेत.वाहतुकीचे नियम आपल्याच चांगल्यासाठी आहेत ते पाळायलाच हवेत. 


एका जवळच्या मित्राला मी हेल्मेटचे महत्व सांगत होतो तर त्याने प्रतिऊत्तरात "नशिबात व्हायचे असेल तर ते कधीही होईल तु हेल्मेट घातल काय किंवा नाही काय ?तरीही वाद प्रतिवाद करुन मी हेल्मेटचे महत्व त्याला पटवून दिलेच.

आपण एवढयाश्या मोबाईलला स्क्रीनगार्ड,कव्हर काय काय लावतो. एका निर्जिव स्क्रीनला एवढ जपतो तो खराब झाला तर दुसरा घेता येतो पण डोके ,आपले शरीर परत मिळेल का? विचार करावा

सर्व मित्रांना विनंती कि हेल्मेट आणि सीट बेल्ट अवश्य वापरावे. सोबतच गाडी चालवताना फोन वापरू नये.


तुम्हाला काही वाटत नसल तरी घरी तुमचे वाट पाहणारे असतात Cousin च्या अपघाताच्या वेळी हे मी स्वत: अनुभवल आहे तर मित्रानो शेवटी एवढेच सांगेन कि नियम पाळा सुरक्षित रहा. ज्या भ्रष्टाचाराच्या नावाने तुम्ही पोलीस किंवा सरकारी कर्मचाऱ्यांच्या नावाने खडे फोडता त्या भ्रष्टचाराला मूळ कारण तुम्हीच आहात 


So Be The Change you wish see in the World


जो बदल तुम्हाला देशात किंवा जगात घडवायचा आहे त्याची सुरुवात तर स्वतःपासूनच करावी लागेल ना


कोई भी देश  परफेक्ट नही होता उसे परफेक्ट बनाना पडता है आणि  त्याला तसं बनवण्यासाठी प्रयत्न करूया.


संकेत मुनोत

8087446346


Monday, March 13, 2017

One In a Lifetime Experience at Sassoon Hospital..

Distributing blankets from 9:00 pm to 4:00am in Hadpsar ,khadki, pune station , bhavani peth, swargate ; 'Changle vichaar' team was about to return . suddenly there was a call from Amol ." Please come at sasoon hospital. A blind boy's leg is fractured. We have contributed few rupees near municipality." The call ended...
I , Nilesh and harshal bhaiya took our bikes ..we were about to return. But there was a call from samta didi ,"The case is serious..come as soon as possible." My heart came in my mouth..a cycle started in my mind. What were we going to do and what happened ! Someone under the wheel ? Or something else must have happened ? One heart was saying that someone may have helped but the other heart was under tension. 
As we entered sasoon , there was a sense of relief.
Actually what had happened was..
Changle vichar team along with samta didi was wandering at the municipal corporation road, finding someone needy for Blanket donation. When they were returning they saw 3 youngsters near the divider .The car went  forward...but  some doubt was disturbing samta didi , may be the trio was blind .She took a U turn.They were actually blind  and trying to hire an auto or a car.Many vehicles passed but not even one person thought about them? No one asked them what happened? We punekars have become so inhumane ?
One of the three named laxmikant's right leg got caught in a pit and the other two were trying to put it right..As soon as the team realised this, chaitanya took him to the sasoon hospital via auto.( His friends were advising us to take him to mangeshkar hospital.)The auto driver didn't charge .We urged him to but he expressed , "As a human this is my duty "
We had a common outlook that government hospitals don't act fast.But we experienced something different.
Doctors showed enthusiasm and within seconds he removed his leg dislocation. Everyone was tensed and eager to see the x-ray reports .The reports were normal . We took a deep breath. Thereafter we took him to ambedkar hostel and departed him.
Now we have 4 friends with special vision . Before some time got call from Amol and Vidyadhar  that laxmikant was feeling well.He was continuously thanking us. As he was cured free, he was telling us to accept money from him.I was touched seeing his honesty.I had tears in my eyes.
The fat guy sitting to the right is laxmikant parab.
Only because of Samta dii,amol , chaitanya ,supriya (changle vichar team) and laxmikant's friends' timely decisions , his leg was saved from being fractured .
I had a different experience of the Auto driver , government hospital , their workers .I realized that if we take a good step we meet many taking such good steps..
Also while we were donating blankets we experienced something good.
Nilesh commented 'There are some rich people whose wants never end .But there are people who are satisfied with their small comforts and refuse to accept any type of donations. Instead they also try to help others.There was a old man sleeping under bhide bridge near a small temple .(He had a worn out blanket )He refused our Blanket.We told him that he can use it for sitting but he said that he already has one.In such intense cold, beneath clear sky ,sitting on a small bench actually preached the theory of life....
Sanket Munot
Whatsapp number- 8087446346
Translation- Manali Kasawa
#Changle vichar team
#Blanketdonationdrive
#happyexperience